संस्मरण
दिशा
सांस्कृतिक मंच (हरियाणा)
'जिंदादिल'
'देवेंदर'
जिंदाबाद
June_july
2014 Arunatara_VIRASAM
by-
Varvara Rao _
trans.
from telugu Samar 'Shant'
जिन
तेलगू वासियों को अखिल भारतीय
प्रतिरोध मंच (AIPRF),
फॉरम अगेंस्ट
साम्राज्यवादी भूमंडलीकरण
(FAIG) के
अधिवेशन या अन्य कार्यक्रम
देखे हैं, उनके
लिये दिशा सांस्कृतिक मंच
(हरियाणा)
के नाम को अलग से
परिचत करवाने की जरुरत नहीं
है. खासकर
से 1991 से
शुरु हुई उदारीकरण,
निजीकरण व भूमंडलीकरण
की नई आर्थिक नीतियों के खिलाफ
2004 तक
देशव्यापी स्तर पर हिंदी में
गाने, नुक्कड़
नाटकों का प्रदर्शन किया.
दिशा के कार्यक्रमों
में हमेशा ही सर्वहारा वर्ग
का सटीक दृष्टिकोण व नये रुप,
सृजनात्मकता,
निपुणता दिखती थी.
1996
में राष्ट्रीयता
की समस्य पर अंतर्राष्ट्रीय
सेमिनार का आयोजन AIPRF
की तरफ से हुआ था.
राष्ट्रीयता की
समस्य पर इस सेमिनार को सफल
बनाने में, पेपेर
प्रस्तुत करते हुये विलियम
हिंटन, गूगी
व थियांगो जैसे प्रमुख वक्ताओं
ने प्रमुख भूमिका निभाई थी.
उतनी ही प्रमुख
भूमिका सांस्कृतिक कार्यक्रमों
ने भी निभाई थी. इस
सेमिनार के कुछ समय पहले
नाइजिरया की फासीवादी सरकार
ने वहां के जन कवि और नाट्यकर्मी
केन सारो वीवा को फांसी पर
लटकाया था. वे
ओगोनी जनजाति (आदिवासी)
के सांस्कृतिक
योद्धा थे. नाइजिरया
की इस आदिवासी जनजाति स्थाऩीय
तेल पर अपने आधिकार के लिये,
ब्रिटीश पेट्रोल
कंपनी के खिलाफ संघर्ष किया
था. केनसारो
वीवा अपने देश की जनता के साथ
खड़े थे. उसने
अपनी जनता के संघर्ष के गीत
व नाटक लिखे. लंबे
समय तक फ्रांस में रहे नाइजिरया
नाट्यकर्मी ओलेसोयेंका भी
अपने देश आकर जनता के समर्थन
में खड़े हुये थे.
नाइजिरया की तानाशाही
सरकार ने उनको रोकने के लिये
उन पर हत्या का मुकद्दमा दर्ज
किया. लेकिन
केनसारो वीवा अपनी जाति के
अपनी संपत्ति पर अधिकार के
लिये दृढ़ता के साथ लड़ते हुये
फांसी के फंदे को चुमे.
केनसारो
वीवा की फांसी व उसके जीवन पर
आधारित एक नाटिका दिशा सांस्कृतिक
मंच ने उस सेमिनार में पेश की
थी. वह
एक अद्भुत व रोमांचकारी अनुभव
था. (वहीं
जन नाट्य मंडली के कलाकारों
की तरफ से शहीद कामरेड कुमारी
को केंद्र में रखते हुये दीप
नाट्य व काश्मीर में भारत सेना
के अत्याचारों पर एक नाटक
प्रस्तुत किया गया था.)
कामरेड
देवेंदर इसी दिशा सांस्क़तिक
मंच के व्यवस्थापकों में से
एक हैं. 41 वर्ष
की उम्र में उनका 24
जुलाई 2013
को निधन हो गया.
पीछले चार साल से
वह मस्तिष्क की बीमारी से
ग्रस्ति थे. वह
4 साल से
कुछ भी नहीं कर पा रहे थे.
हरियाणा
में गाने की रागणी नाम वीधा
व उसके साथ वहां का स्थानीय
वाद्य प्रसिद्ध है.
'दिशा'
ने इस का क्रांतिकारीरण
किया. इसके
साथ साथ महिला विरोधी सांमती
प्रथा (घुंघट-
जिसमें महिला को
अपने मुंह ओढ़नी से ढ़क कर
रखना पड़ता है) के
खिलाफ जनवादी दृष्टिकोण से
कई गाने लिखे. कामरेड
देवेंदर ने हरियाणा में चाहे
गाने हों या फिर नुक्कड़ नाटक
उन्होंने हमेशा सृजनात्मक
भूमिका निभाई. डंकल
प्रस्ताव व विश्व व्यापार
संगठन के खिलाफ कामरेड देवेंदर
के नेतृत्व में बहुत सारे
कार्यक्रम दिशा ने प्रस्तुत
किये. जब
अमेरीकी साम्राज्यवाद ने
अफगानिस्तान व इराक पर हमला
किया तो उसके खिलाफ भी दिशा
ने जो प्रचार किया,
उस में देवेंदर की
अहम भूमिका रही. एक कलाकार के तौर पर वे निपुण कलाकर थे.
अहम भूमिका रही. एक कलाकार के तौर पर वे निपुण कलाकर थे.
गाना,
नाटक,
नाटिका व लेखन के
लिये कामरेड देवेंदर के नेतृत्व
में कई वर्कशाप आयोजित हुईं.
उन्होनें सैकड़ों
युवाओं को सांस्कृतिक प्रशिक्षण
प्रदान किया. कामरेड
देवेंदर ने हमेशा हंसते-गाते
खुशी के साथ सब को उत्साह देते
थे. ओर
सब का दिल जीत लेते थे.
वे दिल जीत लेने
वाले कलाकार थे. वे
दिशा के मुंह में जुबान जैसे
थे. अखिल
भारतीय सांस्कृतिक लीग (AILRC)
कई अभियानों,
व दिशा का AILRC
का घटक संगठन होने
के चलते उनसे व उनकी जीवनसाथी
आरती से कुरुक्षेत्र,
अंबाला,
नरवाना,
दिल्ली आदि में कई
बार मिलने का मौका मिला.
कुरुक्षेत्र में
मैं बहुत बार उनका अतिथी बना.
दिशा
"अभियान"
नामक साहित्यक
पत्रिका भी प्रकाशित करता
है. यह
पत्रिका खासकर युवा व छात्रों
को ध्यान में रखते हुये,
उनमें से ही रचनाकार,
लेखक तैयार करने,
उनसे सरल व संक्षिप्त
रचनाएं लिखने की अपील करते
हुये "अभियान"
चलती है.
"अभियान"
के संपादक मंडल ने
माओ के शिक्षा के अनुरुप -
घिसेपिटे लेखन के
विरुद्ध, व
बड़े व कठिन लेखन शैली के
विरुद्ध नरवाना में दो दिन
की "अभियान
गोष्ठी" का
आयोजन किया गया था.
इसमें पत्रिका में
लिखने वाले लेखक,
पाठक व वरिष्ठ लेखकों
को आमंत्रित किया गया था.
दो दिन चर्चा के
बाद एक वर्कशाप का भी आयोजन
हुआ था. पाठकों
सहित अन्य छोटी पत्रिका चलाने
वाले दिल्ली, उत्तर
प्रदेश, बिहार
से अनुभवी लोगों को भी बुलाया
गया था. मैं
भी इस में शामिल हुआ था.
वर्क शाप के दोनों
दिन बहुत उत्साहजनक चर्चा
हुई थी. इस
से निकले सबकों को व पाठकों
की राय को संपादक मंडल ने
स्वीकार किया और आगे से इसे
सीखते हुये पत्रिका चलाने का
अश्वासन पाठकों को दिया.
दिशा सांस्कृतिक
मंच जिस तरह से सामुहिक मेहनत
से आगे बढ़ा उस में कामरेड
देवेंदर जैसे कामरेडों की
मेहनत व सहयोग अमुल्य है.
एक
अच्छे कलाकार ही नहीं,
जिंदादिल देवेंदर
नहीं रहे, यह
समाचार मुझे बहुत देर से मिला.
वे नहीं रहे,
इस से चिंता में
डूबने की जरुरत नहीं है,
जो लोग देवेंदर को
जानते हैं, उन
हजारों दिलों में हमेशा देवेंदर
जिंदा रहेंगे.
'जिंदादिल'
'देवेंदर'
जिंदाबाद.
यह
लेख क्रांतिकारी लेखक संघ
(विरसम)
की पत्रिका -
अरुणतारा -
के जून-जुलाई
2014 के
अंक में प्रकाशित हुआ था.
यह उसका फ्री
अनुवाद है. मूल
तेलुगू में पढ़ने के लॉगऑन
करें - virasam.in/arunatara
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